नींद किसी वरदान से कम नहीं है, लेकिन कम मेहनत, ज्यादा तनाव और खराब दिनचर्या ने लोगों की नींद उड़ा रखी है। इससे याददाश्त कमजोर हो रही है, मानसिक परेशानियां, डिप्रेशन और चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है। जिला अस्पताल के मानसिक रोग विभाग में 19228 मरीजों पर की गई स्टडी में करीब 47 प्रतिशत लोग नींद न आने की बीमारी के शिकार मिले। यह स्टडी मार्च 2019 से लेकर फरवरी 2020 तक आए मरीजों पर की गई है।
स्टडी में पता चला है कि इनमें काफी संख्या में ऐसे मरीज हैं, जो किसी न किसी कारण से तनाव में रहते थे, जिस कारण उन्हें नींद नहीं आती थी। बाद में वह डिप्रेशन में चले गए। इनमें ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने नींद के लिए लंबे समय तक स्लीपिंग पिल्स ली थीं। कुल मरीजों में डिप्रेशन के शिकार 40 प्रतिशत थे। माइग्रेन के 35, स्कीजोफ्रेनिया के पांच, अल्जाइमर के पांच, अत्यधिक गुस्सा आने के तीन, मिर्गी के चार, हिस्टीरिया तीन व नशे की लत के पांच फीसदी मरीज निकले। करीब 47 प्रतिशत को नींद न आने की भी बीमारी थी। 10 फीसदी के मन में आत्महत्या का विचार आया। 15 फीसदी में घबराहट या फोबिया मिला। दो फीसदी के व्यवहार में दिक्कत थी।
अनिद्रा दूसरी बीमारी का लक्षण भी
अनिद्रा अपने आप में बीमारी ही नहीं, बल्कि दूसरी बीमारियों का लक्षण भी है। इसकी वजह से उच्च रक्तचाप, दिल के दौरे और मस्तिष्क आघात जैसी जानलेवा समस्याओं से ग्रस्त भी हो सकते हैं। इस संबंध में जागरूकता फैलाने के लिए 2008 से मार्च के हर दूसरे शुक्रवार को विश्व निद्रा दिवस मनाया जा रहा है। अनिद्रा को इनसोमनिया भी कहते हैं।